बस्ती। जिला मुख्यालय से 8 किमी की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक चंदोताल पक्षी विहार अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा है। हालत यह है कि पांच किमी क्षेत्र में फैले चन्दो ताल में लगे बेंच तक टूटे पड़े है। कभी यहां स्थापित नक्षत्र वाटिका, औषधीय पौधों, गुलाब की बाटिका लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी। प्राकृतिक सौन्दर्य का नजारा देखने दूर दराज से लोग आते थे, यहां ठंडक के मौसम में विभिन्न प्रजाति के प्रवासी पक्षी भी प्रवास करते थे, उनके कलरव से यह गुंजायमान रहता था, लेकिन जिम्मेदारों की उपेक्षा के चलते यहां से न केवल यहां आने वाले पर्यटक मुंह मोड़ चुके है बल्कि प्रवासी पक्षियों का आना भी थम गया है। यहां अनेक स्थानों पर आने वालों के बैठने के लिए लगाए गए बेंच तक टूटे पड़े हैं। सड़क, चबूतरें भी टूट कर क्षतिग्रस्त हो चुके है। ताल में जलकुंभी, खर पतवार, काई और सिल्ट जमा है। संडांध के चलते तालाब के पानी से उठती दुर्गंध के चलते लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है।
कभी पर्यटकों को लुभाने वाले चन्दो ताल से प्रवासी पक्षियों ने भी मुंह मोड़ा
पांच किलोमीटर के दायरे में फैले चन्दो ताल पक्षी विहार को देखने कभी दूर दराज से लोग परिवार वालों के साथ देखने आते थे। यहां की अनुपम छंटा लोगों को लुभाती थी। पक्षी विहार के सौन्दर्य को निहारने की ललक उन्हे बरबस यहां खींच लाती थी। बच्चों के साथ पूरे परिवार का मन पूरा दिन व्यतीत करने के बाद भी यहां से जाने का नहीं करता था। प्राकृतिक सौन्दर्य को ख़ुद में समेटे यह चन्दो ताल एक समय प्रवासी पंक्षियों से गुलजार हुआ करता था। नवम्बर माह से ही यहां साइबेरियन सहित अन्य विदेशी पक्षियों का आगमन शुरू हो जाता था। मिस क्रेन, ब्लू टेल्ड बी ईटर, रूडी शेल्ड कयूरेशियन, लालसर, सहित बत्तख, हंस देशी विदेशी पंक्षियाँ यहां अपना डेरा जमाती थी। प्रवासी पक्षियां यहां करीब तीन महीने के प्रवास के बाद अपने वतन को वापस चले जाते थे। इतना ही नहीं यहां की आबोहवा रास आने के कारण कुछ विदेशी पक्षियों ने यहां अपना स्थायी बसेरा तक बना लिया था। प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक यहां आया करते थे। इसे देखते हुए 1996 में इस चन्दो ताल को पक्षी विहार का दर्जा दिया गया था। 12 वर्ष पूर्व केंद्र सरकार द्वारा इस स्थल को नेशनल वेटलैंड की श्रेणी में भी शामिल किया गया था। लेकिन आज यहां जगह जगह बेंच, सड़क, चबूतरे आदि टूटे पड़े हैं।
औषषीय पौधे, गुलाब वाटिका गायब, जलकुंभी, खर पतवार,काई, सिल्ट चंदो ताल की पहचान
करीब पांच किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस चंदोताल में पानी का निकास न होने से पानी में सड़न पैदा हो गई है, जिसके कारण काफी दुर्गंध फैल रही है। तालाब में जलकुंभी, खर पतवार,काई, सिल्ट जमा हो गया है। जिससे यहां अब नाव भी नहीं चल पा रही है। इस विशालकाय ताल में पर्यटकों के घूमने के लिए आया मोटर बोट वर्षों से पानी मे पड़े पड़े सड़ रहा है। यहाँ लगे तरह तरह के औषषीय पौधे, गुलाब वाटिका आदि पूरी तरह खत्म हो गया है। स्थानीय लोगों ने बताया कि जलकुंभी आदि होने की वजह से तालाब के पानी में सड़ांध पैदा हो गई है। इससे उठने वाले दुर्गंध के चलते यहां खड़ा हो पाना भी मुश्किल हो जाता है। बदहाली के चलते हालत यह है कि अब पर्यटक भी यहां आना पसंद नहीं करते। यदि भूले भटके आ भी जाते है तो यहां की दुर्दशा देख दोबारा आना नहीं चाहते।
वन विभाग के कप्तानगंज क्षेत्र के रेंजर राजू प्रसाद ने बताया कि पक्षी विहार के सौन्दर्यीकरण और विकास के लिए शासन स्तर पर पत्राचार किया जाएगा। बजट आवंटित होते ही चन्दो ताल पक्षी विहार को फिर से संवारने का काम शुरू होगा।
